छोड़ दिया:-दैनिक फ्रेश न्यूज:साहित्य सहवास




 छोड़ दिया


ज़िंदगी  को   अलविदा    कह    दिया।

शहर गली मोहल्ले को मेनें छोड़ दिया।


  खुशियों ने मुँह मोड़  लिया हालातों के

  बदल ते सभी ने साथ देना छोड़ दिया।


उम्मीदो  के  रास्तों  पर  मिली  ठोकरें 

तबसे हमनें घुट  कर रोना छोड़  दिया।


  शहद  के नाम  पर  जहर मिला तबसे

  किसी  पर  भरोसा करना  छोड़ दिया।


चाहा तो  बस खुद  को  चाहा  ज़िंदगी

से शिकायतें  करना  मेनें  छोड़  दिया।


  निकल पड़ा सफ़र में चलते चलते पैरों

  ने मंज़िल का पता पूछ ना छोड़ दिया।


नीक राजपूत
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 फ्रेश न्यूज साहित्य सहवास 



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